पाश्चात्य तथा भारतीय सामाजिक चिंतको का सामाजिक न्याय संबंधी विचार
अवधेश कुमार
न्याय लैटिन शब्द, जस्टीशिया से बना है जिसकी उत्पत्ति अंग्रेजी शब्द ‘जस्टिस’ से हुई है जिसका अर्थ है जोड़ना। इस प्रकार न्याय के अर्थ के अन्तर्गत विविध आदर्शो और मूल्यों का समायोजन या समन्वय किया जाता है। व्यवहारपरक संदर्भ में इसका संबंध राज्य के कानून की धारणा है जिसके परिणामस्वरूप कानून या न्याय जुड़वा धारणाएं बन जाती है। अर्थात्, न्याय का संबंध कानून व्यवस्था तथा सजा देने वाले नियमों की व्याख्या से भी होता है। सामान्य जीवन में न्याय का तात्पर्य होता है निष्पक्षता, उचित या जो नैतिक रूप में उचित हो। निस्संदेह न्याय एक मूल्यपरक अवधारणा है जो नैतिक रूप से अच्छा है वही न्यायपूर्ण है और जो अन्यायपूर्ण है उसकी इस रूप में निंदा की जाती है कि वह अनैतिक है। न्याय एक ऐसी लचीली धारणा है जो भलाई अथवा कल्याण की किसी भी धारणा के साथ अनुकूलित की जा कसती है। सामान्य अर्थ में न्याय का तात्पर्य होता है - कर्तव्यपरायणता या सदगुण। इसे सत्य और नैतिकता के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। ग्रीक चिन्तक प्लेटों ने न्याय को सद्गुण के रूप में परिभाषित किया है। उसके अनुसार न्याय किसी व्यक्ति को उसका हक दिलाना नहीं अपितु समाज के विभिन्न वर्गों और वर्णों में न्यायपूर्ण समानुपात है। इसके विपरित समतावादी दृष्टिकोण के अनुसार न्याय वहाॅ स्थापित होता है जहाॅ समानता को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है।
अवधेश कुमार. पाश्चात्य तथा भारतीय सामाजिक चिंतको का सामाजिक न्याय संबंधी विचार. International Journal of Multidisciplinary Education and Research, Volume 1, Issue 1, 2016, Pages 08-11