Vol. 4, Issue 5 (2019)
जैन दर्शन में बंधन और मोक्ष का सिद्धांत
Author(s): डाॅ. मुकेश कुमार
Abstract: बंधन का अर्थ साधारणतः भारतीय विचारकों ने जन्म-मरण के चक्कर में फँसना बताया है। जैन दर्शन भी बंधन को इसी अर्थ में गहण करता है। इस दर्शन के अनुसार जीव अपने मौलिक रूप में ‘अनंतचतुष्ट्य’ (अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति एवं अनंत आनंद) के गुणों से युक्त रहता है। जब जीव शरीर धारण करता है, तब वह बंधनग्रस्त हो जाता है और उसके मौलिक गुण छिप जाते हैं। इस प्रकार, शरीर ही जीवों के बंधन का कारण माना गया है। जैन दर्शन मंे बंधन के दो प्रकार बताए गए हैं - भावबंधन और द्रव्यबंधन। मन में दूषित विचारों को भरने से ‘भावबंधन’ होता है और जीव के पुद्गलों से वास्तव में संबद्ध होने से ‘द्रव्यबंधन’ होता है। जीव का पुद्गलों से छुटकारा पाना ही ‘मोक्ष’ है। जैन दर्शन के अनुसार सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चरित्र ही मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं - सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।