Vol. 4, Issue 5 (2019)
प्रेमचन्द के उपन्यासों में पारिवारिक समस्याओं का चित्रण
Author(s): चयनिका शइकीया
Abstract: परिवार मनुष्य जीवन की प्रथम पाठशाला है। परिवार के अन्दर बालक अपने माता पिता के दुलार में अपना शैशव बिताता है। आजकल परिवार से तात्पर्य पति-पत्नी और उनकी संतान है, परन्तु आज से कुछ वर्षो पूर्व भारत में संयुक्त-परिवार की प्रथा थी, अर्थात् उसमें दो तीन पीढ़ियाँ एक साथ मिलकर जीवन व्यतीत करती थीं। प्रेमचन्द के युग में संयुक्त परिवार की प्रथा अनेक दोषों के कारण धीरे-धीरे टूटती जा रही थी। संयुक्त परिवार में आये दिन की कलह जीवन की शान्ति को भंग कर देती थी। पारिवारिक कलह के दो मूख्य कारण हैं - व्यक्तिगत स्वार्थ तथा आर्थिक कठिनाई जब लोगों में स्वार्थ की भावना प्रबल और त्याग की भावना समाप्त होती गई, तो प्रतिदिन झगड़े होने लगे। परिवार में पति-पत्नी का मूख्य एवं महत्वपूर्ण स्थान होता है। दम्पत्ति का आपसी प्रेम और सद्भावना ही पारिवारिक जीवन में आनन्द का संचार करता है। प्रेमचन्द के उपन्यास दाम्पत्य जीवन की विषमताओं से पूर्ण हैं।